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कलयुग की कलंकित तस्वीर: जन्म देने वाली मां की कोख आज बेघर…

  • Writer: Sadre Alam khan
    Sadre Alam khan
  • Jun 9
  • 2 min read


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संतकबीरनगर, खलीलाबाद। जिस मां ने नौ महीने तक अपने पेट में रखा, जीवन की हर खुशी त्याग कर अपने बच्चे को पाला, पढ़ाया, बढ़ाया — आज वही मां अपने ही बेटे की बेरुखी और क्रूरता का शिकार बनकर तहसील दिवस में इंसाफ की गुहार लगाने को मजबूर है। यह दर्दनाक मामला खलीलाबाद कोतवाली अंतर्गत बूधा गांव का है, जहां 75 वर्षीय वृद्धा फूलमती देवी की आंखें बेटे के अत्याचारों की कहानी बयां कर रही हैं।


कभी इंटर कॉलेज में अध्यापक रही फूलमती देवी ने बताया कि वर्ष 2011 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपने जीवनभर की जमा पूंजी, पेंशन और सारी उम्मीदें अपने इकलौते पुत्र पर ही लगा दी थीं। लेकिन आज वही पुत्र उन्हें घर से निकालने पर तुला है। तहसील दिवस में उपजिलाधिकारी को प्रार्थना पत्र देते हुए उन्होंने कहा कि बेटा, जो इस समय सेमरियावा ब्लॉक में सफाई कर्मी के पद पर कार्यरत है, गलत संगत में पड़कर उन्हें प्रताड़ित करता है। आए दिन गाली-गलौज, धमकी और तानों का शिकार बनकर वह महिला घर से बाहर रहने को विवश हो चुकी हैं।


वृद्धा ने बताया कि जब वह रिटायर हुई थीं, तब उनके बेटे ने सारा पैसा अपने हाथ में ले लिया था और अपनी मनमानी में खर्च कर दिया। जब पैसे खत्म हो गए, तो मां की अहमियत भी जाती रही। अगर उन्हें हर महीने पेंशन की थोड़ी रकम न मिल रही होती, तो उनका जीवन सड़क पर भीख मांगते बीत रहा होता।


यह एक ऐसा उदाहरण है जो समाज के उस कड़वे सच को उजागर करता है जहां ‘कोख’ की ममता का मोल भी स्वार्थ के तराजू पर तौला जाने लगा है। फूलमती देवी का दर्द केवल एक मां का दर्द नहीं, बल्कि उन तमाम वृद्ध माताओं की पुकार है जो अपने ही घरों में परायों जैसा जीवन जीने को मजबूर हैं।


इस संवेदनशील प्रकरण पर उपजिलाधिकारी ने कहा है कि मामले की गंभीरता से जांच की जाएगी, और यदि आरोप सही पाए गए तो आरोपी पुत्र के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।


सवाल यह नहीं कि दोषी को सजा मिलेगी या नहीं, सवाल यह है कि क्या समाज अपने नैतिक पतन को पहचान पाएगा? क्या हम उस स्तर पर पहुंच चुके हैं जहां मां की ममता भी बोझ लगने लगी है?

 
 
 

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